Take the examination normally.
Take the examination normally. |
As
soon as the date of the examination is announced, a mental stress and
psychological pressure usually all students - students feel. It is not
unnatural too. The truth is that there is also a positive aspect of stress,
pressure, or fear about the exam. In fact, this tension or fear becomes a
source of inspiration for the common students - girl students, who are forced
to engage them in slowly reading - by keeping them away from other activities
such as TV serials, sports jumps, flapping etc. Does it The problem is with the
students - the students, in which the fear of examiners, like a ghost, makes
them mentally and physically unwell so that they not only cause a serious
concern for them but also for their family.
There
are many instances where the test takers start talking about drowsiness and
leaving the exam just before the exam. Distract and tense your parents and
family. When they are involved in examinations and convincing, sometimes they
are also from the top numbers and then feel that they were disturbing
themselves and their family members. After all, what are the unusual fears of
this test that arise? Some factors are easy to spot on the idea -
Unrealistic expectations of parents andfamily: -
In
the rapidly changing social environment, especially with the effect of
'globalization' parents and family students are beginning to have excessive and
sometimes unnatural expectations. They are expected to get 90 percent marks.
Whether his interest is in literature and poetry, he is forced to enter any
type of 'engineering' or 'medical' to get the highest marks in science and
mathematics. Suppose if this did not happen, then his life would end. In this
way, sometimes the excessive expectations of the family members also start to
intimidate the mind-brain with the students.
Lack of pre-planning and timetable of study:-
Some
students - Students are not able to ensure pre-planning and timetable of study
for preparation of exams in the absence of proper guidelines and training. How
many days are left in the examination and accordingly according to how many
days to complete the letter, how much time to study from time to time and how
much time to spend for other works. Due to not properly arranging this
properly, many students - students can not complete their studies by spending
more time and energy till the date of examination, nor can they achieve
satisfactory control. As such, when the date of examination is approaching,
they become very distracted and frightened. The question is how can this ghost
of the exam finally be run? It is so obvious that parents and family have an
important role. They should not burden their children with excessive and
unrealistic expectations.
Teacher: -
Preparation
and preparation of examinations - Instructions and statements given by the
school / college teachers for motivating students, sometimes it also frightens
them. Although the aim of the teachers is to motivate and excite them. Some
teachers cannot balance their statements and instructions and unknowingly
discourages and frightens the umbrellas before examinations.
It
is okay to get motivated and excited for regular study, but parents should also
understand that in this changing phase of today it is not necessary that their
child is a doctor, engineer or officer. Today there are so many areas of job or
profession that they can earn names and money by going to any suitable area
according to their abilities and merit. They should train and excite children
according to their children's interests and special abilities.
The
role of educators is also important. It is advisable to motivate students to
prepare for the exam and also necessary. But, while giving instructions in this
regard, he should take special care of the fact that there are no unnecessary
fears or disappointments in his test subjects. Appropriately it is that they
should train their students to prepare the pre-planning and timetable of study
and motivate them to implement it. Students preparing for the exams - Students
decide the pre-planning and schedule of studies and execute it wholeheartedly,
the ghost of the fear of examination never breaks them. Yes, there is a need to
sacrifice and labor today to touch the heights of successes and pleasures in
the coming life.
“Do
not labor from labor, do not confuse anything,
The sun of success will shine
one day, just do it from the heart.”
परीक्षा को सामान्य ढंग से लें ।
Take the examination normally. |
परीक्षा की तिथि घोषित होते ही एक मानसिक
तनाव और मनोवैज्ञानिक दबाव अमूमन सभी छात्र – छात्राएँ महसूस करते हैं ।
यह अस्वाभाविक भी नहीं है । सच तो यह है की परीक्षा को
लेकर तनाव, दबाव या भय के सकारात्मक पहलू भी है ।
वास्तव में यही तनाव या भय आम छात्र – छात्राओं के लिए एक
प्रेरणा स्त्रोत बन जाते है, जो उन्हे अन्य कार्यकलापों
जैसे टी॰वी॰ सीरियल, खेल कूद, गप्पबाजी आदि को दूर रखकर धीरे –धीरे पठन – पाठन में संलग्न होने के लिए बाध्य करता है। समस्या वैसे छात्र – छात्राओं को लेकर है जिनमें परीक्षा का भय एक भूत की तरह सवार होकर उन्हें
मानसिक तथा शारीरिक रूप से इतना अस्वस्थ कर देता है जो न सिर्फ उनके लिए वरन उनके
परिवार के लिए भी एक गंभीर चिंता का कारण बन जाता है।
ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जब
परीक्षा के ठीक पहले परीक्षार्थी रोना-धोना तथा परीक्षा छोड़ देने की बात करने लगते
हैं । अपने माता – पिता तथा परिवार को विचलित एवं तनावग्रस्त
कर देते हैं। बहुत मिन्नते एवं समझाने पर जब वे परीक्षा में शामिल होते हैं, तो कई बार अव्वल नंबरों से पास भी होते हैं और तब महसूस करते हैं कि नाहक
अपने को और अपने परिवार वालों को परेशान कर रहे थे। आखिर परीक्षा के प्रति यह
असामान्य भय किन कारणों से उत्पन्न होते है? विचार
करने पर कुछ कारक तत्व तो सहज ही स्पस्ट होते है –
माता-पिता व परिवारवालों की अवास्तविकअपेक्षाएँ :-
तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश में, विशेषकर ‘ग्लोबलाइज़ेशन’ के प्रभाव स्वरूप माता-पिता तथा
परिवार वाले छात्र-छात्रों से अत्यधिक और कभी-कभी अस्वाभाविक अपेक्षाएँ रखने लगे
हैं। उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे 90 प्रतिशत अंक प्राप्त करें। चाहे उनकी
रूचि साहित्य और कविताओं में क्यों न हो, उन्हें
विज्ञान और गणित में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने ‘ इंजीनियरिंग’ या ‘मेडिकल’ में
किसी भी प्रकार प्रवेश पाने के लिए बाध्य किया जाता है। मानों अगर ऐसा नहीं हुआ, तो उनका जीवन ही खत्म हो जाएगा। इस प्रकार कभी – कभी
परिवारवालों की अत्यधिक अपेक्षाएँ भी छात्र – छात्रों को मन –
मस्तिष्क को परीक्षा से भयभीत करने लगता है ।
अध्ययन की पूर्व योजना एवं समय - सारिणी का अभाव :-
कुछ छात्र – छात्राएँ उचित दिशा निर्देश
एवं प्रशिक्षण के अभाव में परीक्षा की तैयारी के लिए अध्ययन की पूर्व योजना एवं
समय सारिणी को सुनिश्चित नहीं कर पाते । परीक्षा में कितने दिन बाकी है एवं
तदनुसार कितने दिनों में किस पत्र को पूर्ण करना है, प्रतिदिन
किस समय से किस समय तक अध्ययन एवं कितना समय अन्य कार्यों के लिए खर्च करना है।
इसे सही ढंग से सुनियोजित न करने के कारण कई छात्र – छात्राएँ
अधिक समय और शक्ति व्यय करके भी अपनी पढ़ाई परीक्षा की तिथि तक न तो पूर्ण कर पाते
है और न ही संतोषपूर्ण नियंत्रण हासिल कर पाते है । फलत: परीक्षा की तिथि निकट आने
पर वे अत्यंत विचलित एवं भयभीत हो जाते है । सवाल यह है कि परीक्षा के इस भूत को
आखिर भगाया कैसे जा सकता है। इतना तो स्पस्ट है कि माता-पिता व परिवार की अहम
भूमिका है। उन्हें अपने बच्चों पर अत्यधिक एवं अवास्तविक अपेक्षाओं का बोझ नहीं
डालना चाहिए ।
शिक्षक :-
परीक्षा की तैयारी तथा उसके प्रति छात्र – छात्रों को
प्रेरित करने के उद्देश्य से स्कूल / कॉलेज के शिक्षको द्वारा जो निर्देश और
वक्तव्य दिये जाते हैं कभी-कभी यह भी उनमें भय उत्पन्न कर देता है। यद्यपि
शिक्षकों का उद्देश्य उन्हें प्रेरित और उत्साहित करना होता है। कुछ शिक्षक अपने
वक्तव्यों और निर्देशों में संतुलन नहीं रख पाते और अनजाने में ही छत्रों को
परीक्षा के पूर्व ही हतोत्साहित और भयभीत कर देते है
नियमित पढ़ाई के लिए प्रेरित एवं उत्साहित करना तो ठीक है, परंतु अभिभावकों को यह भी समझना चाहिए की आज के इस बदलते दौर में यह कतई
आवाश्यक नहीं कि उनका बच्चा कोई डॉक्टर, इंजीनियर या
अफसर ही बने। आज नौकरी या पेशे के इतने ढेर सारे क्षेत्र सामने आ गए है कि अपनी
अभिरूची और योग्यता के अनुरूप किसी भी उपयुक्त क्षेत्र में जा कर नाम और पैसा कमा
सकते है। उन्हें अपने बच्चों की अभिरूचि और विशिष्ट योग्यताओं को पहचान कर, उसी के अनुरूप बच्चों को प्रशिक्षित एवं उत्साहित करना चाहिए।
शिक्षकों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। परीक्षा की तैयारी के लिए छात्र –
छात्राओं को प्रेरित करना उचित है और आवश्यक भी। परंतु इस संबंध में
निर्देश देते समय उन्हें इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उनकी किसी बातों से
परीक्षार्थीओं में कोई अनावश्यक भय या निराशा उतप्पन न हो । उचित तो यह है कि वे
अपने विद्यार्थियों को अध्ययन की पूर्व योजना एवं समय सारिणी तैयार करने का
प्रशिक्षण दें तथा उस पर अमल करने की प्रेरणा दें। परीक्षा की तैयारी के लिए जो
छात्र – छात्राएं अध्ययन की पूर्व योजना एवं समय – सारिणी निर्धारित कर पूरे मन से उसका अमल करते है, परीक्षा के भय का भूत उनके पास कभी नहीं फटकता । हां इतना तो अवश्य है कि
आने वाले जीवन में सफलताओं एवं सुखों की ऊँचाइयों को छूने के लिए आज त्याग और श्रम
तो करना ही पड़ेगा ।
Impressive
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